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1. वक्फ बोर्ड बनाने की प्रक्रिया: कानून के खिलाफ दलील दे रहे कपिल सिब्बल ने कहा,' हम उस प्रावधान को चुनौती देते हैं, जिसमें कहा गया है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं। सरकार कैसे कह सकती है कि केवल वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं जो पिछले 5 सालों से इस्लाम को मान रहे हैं? इतना ही नहीं, राज्य कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?'
2. पुरानी वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन पर: सिब्बल ने कहा, यह इतना आसान नहीं है। वक्फ सैकड़ों साल पहले बनाया गया है। अब ये 300 साल पुरानी संपत्ति की वक्फ डीड मांगेंगे। यहां समस्या है। इस पर SG ने कहा- वक्फ का रजिस्ट्रेशन 1995 के कानून में भी था। सिब्बल साहब कह रहे हैं कि मुतवल्ली को जेल जाना पड़ेगा। अगर वक्फ का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ तो वह जेल जाएगा। यह 1995 से है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अंग्रेजों से पहले वक्फ रजिस्ट्रेशन नहीं होता था। कई मस्जिदें 13वीं, 14वीं सदी की है। इनके पास रजिस्ट्रेशन या सेल डीड नहीं होगी। ऐसी संपत्तियों को कैसे रजिस्टर करेंगे। उनके पास क्या दस्तावेज होंगे? वक्फ बाई यूजर मान्य किया गया है, अगर आप इसे खत्म करते हैं तो समस्या होगी।'
3. बोर्ड मेंबर्स में गैर-मुस्लिम: सिब्बल ने कहा, 'केवल मुस्लिम ही बोर्ड का हिस्सा हो सकते थे। अब हिंदू भी इसका हिस्सा होंगे। यह अधिकारों का हनन है। आर्टिकल 26 कहता है कि नागरिक धार्मिक और समाजसेवा के लिए संस्था की स्थापना कर सकते हैं।
इस मसले पर CJI और SG के बीच तीखी बहस हुई। कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक बोर्ड में मुस्लिमों को शामिल करेगी? SG ने कहा कि वक्फ परिषद में पदेन सदस्यों के अलावा दो से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
इस पर बेंच ने कहा, ‘नए एक्ट में वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से आठ मुस्लिम होंगे। इसमें दो ऐसे जज हो सकते हैं, जो मुस्लिम न हों। ऐसे में बहुमत गैर मुस्लिमों का होगा। इससे संस्था का धार्मिक चरित्र कैसे बचेगा?’