On April 22, 2025, a terrorist attack occurred in the Baisaran Valley of Pahalgam, Kashmir. Over 40 tourists from various Indian states were targeted. The terrorists, reportedly two individuals, selectively shot tourists after inquiring about their religious identity, killing at least 27 people.
The attack was claimed by The Resistance Front (TRF), a proxy group allegedly linked to Lashkar-e-Taiba. The group's supreme commander, Sheikh Sajjad Gul, is believed to be based in Pakistan. Experts suggest the attackers were likely from Pakistan, citing the unusual targeting of tourists, a tactic not usually employed by local militants.
The attack is seen as an attempt to destabilize the region and incite communal tensions between Hindus and Muslims. The timing of the attack, coinciding with the visit of the US Vice President to India and Prime Minister Modi's trip to Saudi Arabia, is believed to be deliberate.
The incident highlights the continuing security challenges in the region. The quick nature of the attack, lasting only 10-15 minutes, is attributed to the knowledge that security forces require significantly more time to respond. Increased human intelligence and border security measures are deemed crucial.
22 अप्रैल की दोपहर करीब 2 बजे, जगह- कश्मीर के पहलगाम की बैसरन घाटी। देश के अलग-अलग राज्यों से 40 से ज्यादा लोगों का ग्रुप यहां घूमने आया था। सभी टूरिस्ट खुले मैदान में थे। आसपास ही 4 से 5 छोटी-छोटी दुकानें हैं। कुछ टूरिस्ट दुकानों के बाहर लगी कुर्सिय
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तभी जंगल की तरफ से दो लोग आए। उन्होंने एक टूरिस्ट से नाम पूछा। टूरिस्ट ने अपना नाम बताया। जंगल से आए लोगों में से एक टूरिस्ट की ओर इशारा करके बोला- ये मुस्लिम नहीं है। इसके बाद पिस्टल निकाली और टूरिस्ट के सिर में गोली मार दी। करीब 10 मिनट तक गोली चलाते रहे। टूरिस्ट्स और दुकानदारों को समझ आ गया कि ये आतंकी हमला है। शुरुआत में एक टूरिस्ट के मरने की खबर आई। रात के 11 बजते-बजते मौतें बढ़कर 27 हो गईं।
पहलगाम में हुआ हमला बीते 6 साल में कश्मीर में सबसे बड़ा टेररिस्ट अटैक है। इससे पहले पुलवामा में आतंकियों के हमले में 40 जवानों की मौत हुई थी। हमले की जिम्मेदारी द रजिस्टेंस फ्रंट यानी TRF ने ली है। इसका सुप्रीम कमांडर शेख सज्जाद गुल है। श्रीनगर में पैदा हुआ शेख सज्जाद अभी पाकिस्तान में है।
दैनिक भास्कर ने हमले के दौरान मौजूद टूरिस्ट, पुलिस और डिफेंस एक्सपर्ट से हमले के तरीके, टाइमिंग और वजहों पर बात की। एक्सपर्ट मानते हैं कि हमला करने वाले आतंकी पाकिस्तान से आए थे। लोकल मिलिटेंट टूरिस्ट पर हमला नहीं करते। ये हमला उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दरार डालने के लिए किया है।
टूरिस्ट बोले- आतंकी झाड़ियों के पीछे छिपे थे, पिस्टल से फायरिंग की मौके पर मौजूद दुकानदारों के मुताबिक, आतंकियों ने दुकानों से कुछ दूर झाड़ियों से फायरिंग की। गोलियां लगने से 4 से 5 टूरिस्ट वहीं गिर गए। फायरिंग के बाद आतंकी भाग गए। गोलियों की आवाज सुनकर आसपास के लोग वहां पहुंच गए। उन्होंने घायलों की मदद की।
सोर्स के मुताबिक, हमले में मरने वालों में लोकल कश्मीरी और विदेशी भी शामिल हैं। विदेशी नागरिक नेपाल और सऊदी अरब के हैं। स्पॉट पर ही कई लोगों की मौत हो चुकी थी। कुछ देर बाद आर्मी के जवान आए और तिरपाल से सभी डेडबॉडी ढंक दीं।
बैसरन घाटी जंगलों से घिरी है। बीच-बीच में हरे मैदान हैं। आतंकी जंगल की ओर से ही आए थे।
गुजरात से आए टूरिस्ट ग्रुप में शामिल एक शख्स ने बताया कि हम करीब 20 लोग थे। मैंने गोली चलने की आवाज सुनी। झाड़ियों के बीच से फायरिंग हो रही थी। मैंने देखा कि कुछ लोग पिस्टल से गोलियां चला रहे हैं। मैं बचने के लिए छिप गया। मेरे साथ आए कई लोगों के बारे में पता नहीं चल पाया है।
एक महिला टूरिस्ट बताती हैं, ‘हम रात से यहां आए थे। जिस जगह फायरिंग हुई, वहां बड़ा सा बलून भी है। हमने अचानक तेज आवाज सुनी। शुरुआत में लगा कि बलून फट गया होगा। तभी लोग चीखते हुए हमारी तरफ आए। मैं और मेरे साथ मौजूद लोग जान बचाने के लिए तेजी से भागे। हमें बाद में पता चला कि आतंकियों ने कई टूरिस्ट को मार दिया है।
ये आतंकी हमलों में मारे गए लोगों की लिस्ट है। मरने वाले टूरिस्ट कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, ओडिशा, नेपाल और यूएई के थे।
‘10 मिनट फायरिंग हुई, देखा कई लोग जमीन पर पड़े हैं’ बैसरन घाटी के पास तैनात ट्रैफिक पुलिस के सिपाही वसीम खान हमले के बाद मौके पर पहुंचे थे। वे बताते हैं, ‘धमाके जैसी आवाज सुनकर मुझे लगा पटाखे चल रहे हैं। वहां भीड़ हुई और रोने-चीखने की आवाज आने लगी, तब हम डर गए।’
‘करीब 10 मिनट तक फायरिंग चलती रही। लोग खून से लथपथ पड़े थे। उनमें कुछ कश्मीरी भी थे। कुछ टूरिस्ट थे। लोकल दुकानदारों और घोड़े वालों ने उनकी मदद की। घायलों को घोड़े पर लेकर गए। कई घायलों को कंधे पर उठाकर अस्पताल तक ले गए। मैंने ऐसा हमला पहली बार देखा है।’
हमला करने वाले कौन, किस आतंकी संगठन से कनेक्शन बीते कुछ साल में जम्मू-कश्मीर में होने वाले सभी छोटे-बड़े हमलों की जिम्मेदारी कश्मीर टाइगर (KT) या द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ही ली है। जम्मू-कश्मीर में करीब 20 साल तीन आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन सबसे ज्यादा चर्चा में रहे। 2019 के बाद इन आतंकी गुटों ने प्रॉक्सी नाम रखने शुरू किए।
TRF ने ये फोटो जारी कर हमले की जिम्मेदारी ली है। ये संगठन लश्कर-ए-तैयबा का प्रॉक्सी माना जाता है।
सिक्योरिटी फोर्सेज के अधिकारी इसकी तीन वजह बताते हैं-
1. नए नामों के जरिए वे साबित करना चाहते हैं कि कश्मीर में आतंकवाद की नई लहर आई है।
2. सेक्युलर दिखने वाले नाम रखे गए, ताकि ये धर्म के आधार पर आए युवाओं के संगठन न लगें।
3. ऐसे नामों से लोकल कनेक्ट दिखेगा और लगेगा कि ये लोकल युवाओं वाला मिलिटेंट ग्रुप है।
जम्मू कश्मीर पुलिस के DGP रहे एसपी वैद के मुताबिक, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI दुनिया के सामने ये दिखाना चाहती है कि कश्मीर के लोकल लोग आजादी के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन ये बिल्कुल गलत है।
90 के दशक में कश्मीर में मिलिटेंसी के वक्त यहां के कई लोकल लोग पाकिस्तान ट्रेनिंग लेने गए थे। बाद में वे लौटे नहीं और वहीं बस गए। ऐसे लोगों का यहां अब भी नेटवर्क है। ऐसे लोगों की ओवर ग्राउंड वर्कर्स नेटवर्क बनाने में मदद ली जा रही है। लोकल लोगों की मदद के बिना ये हमले संभव ही नहीं हैं।
हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा, पाकिस्तान से आए आतंकी शामिल पूर्व DGP एसपी वैद कहते हैं, ‘ये हमला पूरी तरह प्लानिंग करके, पाकिस्तान के इशारे पर किया गया है। कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने के बाद हालात सामान्य हुए हैं, उसमें खलल डालने के लिए ये हमला किया गया है।’
‘हमले के पीछे लश्कर-ए-तैयबा है। ये पाकिस्तान से ऑपरेट हो रहा है। आजकल कश्मीर में 90% आतंकी पाकिस्तान से आ रहे हैं। पहले लोकल मिलिटेंट होते थे, वे टूरिस्ट पर हमला नहीं करते थे। उन्हें पता था कि लोकल लोगों का बिजनेस ठप हो जाता है। पाकिस्तानी आतंकियों और पाकिस्तान को कश्मीर के लोगों से कोई हमदर्दी नहीं है।’
आर्मी को घेराबंदी में 30 मिनट लगते, इसलिए आतंकी 10-15 मिनट में हमला कर भागे हमले के पैटर्न पर दैनिक भास्कर ने रिटायर्ड कर्नल सुशील पठानिया से बात की। उनसे पूछा कि पहले आतंकी टूरिस्ट पर अटैक नहीं करते थे। इस बार टूरिस्ट्स को टारगेट करना क्या हैरान करता है?
सुशील पठानिया कहते हैं, ‘मुझे हैरानी नहीं हो रही है। ये उनका पैटर्न है। आतंकी चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में शांति न रहे। ये कभी टूरिस्ट पर अटैक करते हैं, कभी आर्मी पर। ये ISI का तरीका है। अभी सिक्योरिटी फोर्स को घेराबंदी और जवाबी कार्रवाई करने में कम से कम 30 मिनट लग जाते है। ये बात आतंकी जानते हैं। इसलिए पहलगाम में सिर्फ 10 से 15 मिनट में हमला किया। इसके बाद भागकर किसी सेफहाउस में छिप गए।’
'आतंकियों ने साफ मैसेज दिया है कि हम आप पर कहीं भी अटैक कर सकते हैं। पहले उन्हें पाकिस्तान से घुसपैठ कराई जाती है। रेकी कराई जाती है। लोकल सपोर्ट दिया जाता है। हर जिले में इनके मॉड्यूल हैं। इन्हें रोकने के लिए लाइन ऑफ कंट्रोल पर ज्यादा फोर्स तैनात करनी पड़ेगी। ह्यूमन इंटेलिजेंस बढ़ानी पड़ेगी। किसी लोकल सपोर्ट से आतंकी रुकते हैं, तो उनकी पहचान करना जरूरी है। उन्हें पकड़कर सजा देने की जरूरत है।’
हमले का मकसद कश्मीर के टूरिज्म को चोट पहुंचाना वहीं, साउथ कश्मीर में सर्विस दे चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी कहते हैं, ‘ये हमला टाइमिंग देखकर किया गया है। अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत आए हुए हैं। हमारे प्रधानमंत्री सऊदी अरब के दौरे पर हैं। पाकिस्तान अपने ओवर ग्राउंड वर्कर्स के जरिए इस तरह के हमले करवा रहा है। ये हमला भारत को नीचा दिखाने और हिंदू-मुसलमानों के बीच दरार डालने के लिए किया गया है।’
‘जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक आतंकियों ने नाम पूछकर लोगों को मारा है। अगर आतंकियों ने उन्हें चुन-चुनकर मारा है, तो ये भी काफी कुछ कहता है। पहलगाम घाटी है। वहां आतंकी इस तरह का हमला करके ऐसे भाग नहीं सकते। पहलगाम जिस जगह है, वो पहाड़ी जंगल नहीं है। वहां हरे मैदान हैं।’
जम्मू-कश्मीर में एक्टिव आतंकी ग्रुप
मार्च, 2023 में केंद्र सरकार ने राज्यसभा में UAPA के तहत बैन किए आतंकी संगठनों के नाम बताते हुए उनसे जुड़ी जानकारी दी थी।
1. द रजिस्टेंस फ्रंट (TRF): ये संगठन 2019 में अस्तित्व में आया। सरकार का मानना है कि ये लश्कर-ए-तैयबा का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये आतंकी संगठन जवानों और आम नागरिकों की हत्या के अलावा सीमा पार से ड्रग्स और हथियार की तस्करी में शामिल रहा है।
जम्मू-कश्मीर के आतंकी संगठनों में ‘द रजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) नया नाम है। 2019 में जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाए जाने के बाद इसकी एक्टिविटी बढ़ी हैं। सुरक्षा मामलों के जानकार बताते हैं कि सीमा पार से ISI हैंडलर्स ने ही लश्कर-ए-तैयबा की मदद से TRF को खड़ा किया।
पूर्व DGP एसपी वैद के मुताबिक, TRF में कुछ नया नहीं है, बस जैश और लश्कर के कैडर्स को ही नया नाम दिया गया है। ISI की रणनीति के तहत ये नाम बदलते रहते हैं। 1990 में जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बनने के बाद पहली बार किसी आतंकी संगठन को गैर इस्लामिक नाम दिया गया है।
2. पीपुल्स एंटी फासिस्ट फ्रंट (PAFF): ये जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी आतंकी संगठन है। ये भी 2019 में बना था। ये कश्मीर में युवाओं को आतंकी गुट में भर्ती करने और हथियारों की ट्रेनिंग देने का काम करता है।
3. जम्मू एंड कश्मीर गजनवी फोर्स (JKGF): ये गुट 2020 में बना। इसका काम अलग-अलग आतंकी संगठनों जैसे लश्कर और जैश के कैडर का इस्तेमाल कर टेरर एक्टिविटीज को अंजाम देना है।
4. कश्मीर टाइगर्स (KT): कश्मीर टाइगर्स भी जैश-ए-मोहम्मद का प्रॉक्सी टेरर ग्रुप है। कश्मीर टाइगर्स ने ही 8 जुलाई 2024 में कठुआ में हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी। कठुआ से करीब 150 किमी दूर बिलावर के माशेडी गांव में आतंकियों ने आर्मी ट्रक पर हमला किया था। इस हमले में 22 गढ़वाल राइफल्स के 5 जवान शहीद हो गए थे।
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PM मोदी सऊदी अरब में, अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत में; आतंकियों ने हमले के लिए यही वक्त क्यों चुना
22 अप्रैल 2025 को PM नरेंद्र मोदी सऊदी अरब दौरे पर थे। अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत में मौजूद हैं, उसी दिन जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने बड़ा हमला कर दिया। 25 साल पहले अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत आए थे, तब भी ऐसा आतंकी हमला हुआ था। 20 मार्च 2000 को अनंतनाग जिले में 35 सिख मारे गए थे। पढ़िए पूरी खबर...
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